“मैं जा रहा हूँ…”
“कब तक लौटोगे?”
“पता नहीं… शायद कभी नहीं…”
सुनते ही राधा की सांस थम गई।
“एक बार तो आओगे? मुझे लिवाने…” राधा के स्वर में कंपकंपाहट थी और अपने सबसे बड़े डर के सच होने का एहसास।

कृष्ण कुछ ना बोले। राधा समझ गई कि आज की रात आखिरी रात है। आज वो आखिरी बार इस सांवले को देख रही है, आज ये सांवला आखिरी बार उसे निहार रहा है। ये नज़रें आज के बाद कभी नहीं मिलेंगी। आज के बाद कोई उसे इस कानन में बांसुरी बजाकर नहीं बुलाएगा। आज के बाद वो किसी से नाराज़ होने का नाटक नहीं कर पाएगी। आज के बाद कोई उसे गिड़गिड़ा कर नहीं मनायेगा। आज के बाद यमुना के बहने में वो कलकल ना होगी। आज के बाद सारा वृन्दावन सूना हो जाएगा।
रात के बीतने में अभी दो पहर बाकी थे। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ये सृष्टि थम जाए। क्या कोई नहीं जो इस रात को जाने से रोक ले? प्रेमियों की बचकानी मांगें गर ईश्वर सुन ले तो क्या बात है!
“कृष्ण…”
“ह्म्म्म…”
“सुबह होने से रोक दो ना…”, आज तो राधा के स्वर में गिड़गिड़ाहट थी।
कृष्ण ने आकाश में देखा, भोर होने को थी। राधा की गोद में लेटा हुए कृष्ण उठ खड़ा हुआ। राधा ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया।
“मेरा कुछ तो ख्याल करो…”, अब राधा फफककर रो पड़ी, “मैं कैसे जिऊंगी…”
“और मैं???”, कृष्ण के चेहरे पर उदासी थी। राधा ने इससे पहले ये भाव कभी उसके चेहरे पर नहीं देखा था। कृष्ण ने उदास होना सीखा ही नहीं था। इस मासूम उदास चेहरे के आगे राधा हार गई। कृष्ण का हाथ उसके हाथ से छूट गया।
“कम से कम अपनी कोई निशानी तो देते जाओ…”, हारी हुई राधा ने नज़रें झुकाकर कहा।
यहाँ कृष्ण ने जो निश्चय किया, उसने आने वाली सदियों के हज़ारों फनकारों का नुकसान कर दिया।
“मैं तुम्हे ये बांसुरी दे जाता हूँ। ये वादा कर जाता हूँ कि आज के बाद संगीत से मेरा कोई वास्ता ना होगा…”, बिजली की गति से राधा का हाथ कृष्ण के वचन को रोकने के लिए बढ़ा, पर समय भी राधा के साथ न था।
राधा कृष्ण के लबों को थामे, इससे पहले वो वचन दे चुके थे। बांसुरी हमेशा के लिए थम चुकी थी। राधा जानती थी कि संगीत का त्याग करके कृष्ण ने अपने व्यक्तित्व का सबसे बड़ा हिस्सा उसे सौंप दिया है।
‘ये लड़का अगर गाएगा नहीं तो जिएगा कैसे?’, राधा के विचार उसके होठों तक नहीं पहुँच पाए। वो कृष्ण के मन में ये एहसास नहीं डालना चाहती थी कि तू बांसुरी त्याग रहा है या अपनी मौत का फरमान लिख रहा है। राधा डरती थी कि उसके बोलने से ये ख्याल कृष्ण के मन में पनप जाएगा। नादान लड़की सोचती थी कि वो बोलेगी नहीं तो कृष्ण पर ये एहसास तारी ना होगा, वो बोलेगी नहीं तो कृष्ण ये जानेगा नहीं, वो बोलेगी नहीं तो कृष्ण रोएगा नहीं।
कृष्ण भी पक्का अभिनेता था। कृष्ण नहीं रोया। सब जज़्ब कर गया। आंसू बहाने से कहीं ज़्यादा मुश्किल है आंसू पी जाना। आंसुओं को थामना नहीं चाहिए, वो ज़हर बन जाते हैं।
ज़हर पीना किसे कहते हैं ये महादेव जानते हैं या कृष्ण…
रग-रग में बिछोह का ज़हर समाया है।
कुदरत बनाने वाले! तूने प्रेमियों के भाग में बिछोह क्यों लिखा?
हर साल जन्माष्टमी आती है। वो फिर से पैदा होते हैं। आगे उन्हें फिर राधा से बिछड़ना होता है। ज़हर पीने का ये चक्र सदा उनकी ज़िंदगी में चलता रहता है।