*💥महात्मा ज्योतिबा फुले जी की जयंती पर भावभीनी श्रद्धाजंलि*
*✨सामाजिक समानता, शिक्षा और न्याय के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले जी*
नई दिल्ली, 11 अप्रैल। सामाजिक न्याय, समानता और शिक्षा के प्रतीक, सत्यशोधक समाज के संस्थापक और महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले जी की जयंती पर परमार्थ निकेतन में भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।
महात्मा ज्योतिबा फुले जी का संपूर्ण जीवन वंचितों, पिछड़ों, महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान को समर्पित रहा। वे पहले भारतीय समाज सुधारकों में से थे जिन्होंने बालिकाओं की शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और छूआछूत उन्मूलन जैसे विषयों को गंभीरता से उठाया। उन्होंने समाज के अंदर फैली जातिगत भेदभाव, पितृसत्ता और धार्मिक अंधविश्वासों के विरुद्ध जागरूकता की अलख जगाई।
महात्मा फुले जी का मानना था कि शिक्षा ही वह शस्त्र है जिससे अन्याय और शोषण का अंत किया जा सकता है। उन्होंने 1848 में पुणे में अपने घर में ही पहले बालिका विद्यालय की स्थापना की, जिसकी पहली शिक्षिका उनकी धर्मपत्नी, सावित्रीबाई फुले बनीं। यह कदम उस समय के सामाजिक ढांचे के विरुद्ध क्रांतिकारी था जिसने पूरे समाज को अद्भुत संदेश दिया।
उन्होंने न केवल बालिकाओं बल्कि दलितों और शोषित वर्गों के लिए भी स्कूल खोले। शिक्षा के प्रसार को उन्होंने सामाजिक सुधार का मूल मंत्र माना और इसके लिए उन्होंने तमाम विरोधों का साहसपूर्वक सामना किया।
1873 में महात्मा फुले जी ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य था समाज में फैली जातिगत असमानता, अंधविश्वास और धार्मिक पाखंड के विरुद्ध आवाज उठाना। यह संस्था गरीबों, दलितों और महिलाओं को संगठित कर उन्हें आत्मनिर्भर और आत्मसम्मानी बनाने के लिए प्रयासरत रही। सत्यशोधक समाज ने लोगों को अपनी सामाजिक स्थिति को समझने और उसे सुधारने के लिए प्रेरित किया।
महात्मा फुले जी ने उस युग में महिला सशक्तिकरण की बात की जब स्त्रियों को समाज में केवल घरेलू भूमिका तक सीमित कर दिया गया था। उन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर बालिका शिक्षा का बिगुल बजाया। उन्होंने न केवल स्त्री शिक्षा को बढावा दिया, बल्कि विधवा पुनर्विवाह और बाल विवाह निषेध जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर भी विलक्षण कार्य किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज जब भारत प्रगति के पथ पर अग्रसर है, तब भी समाज में कई स्तरों पर असमानता, जातिवाद और लैंगिक भेदभाव जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। ऐसे में महात्मा फुले जी के विचार और कार्य हमें एक समतामूलक समाज की ओर बढने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
उनकी शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उस समय थीं। उनकी क्रांतिकारी सोच आज के युवाओं, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं के लिए एक दिशा-संकेत हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि कोई भी समाज तब तक पूर्णतः विकसित नहीं कहा जा सकता जब तक उसमें सभी वर्गों को समान अधिकार, सम्मान और अवसर न मिलें।
स्वामी जी ने कहा कि महात्मा फुले जी के विचारों को आत्मसात करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है। आइए, इस अवसर पर हम सब संकल्प लें कि उनके दिखाए मार्ग पर चलकर समाज में समानता, शिक्षा और न्याय की ज्योति को प्रज्वलित रखें।